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हम सोचते हैं कि गुरु-वैष्णव-भगवान और उनकी कृपा बहुत सस्ती है

  • Writer: The Symbol of Faith
    The Symbol of Faith
  • Jul 16, 2024
  • 2 min read

हम सोचते हैं कि गुरु-वैष्णव-भगवान और उनकी कृपा बहुत सस्ती है


श्रीश्री गुरु गौरांगौं जयतः


आपने यह सिद्धांत विचार कभी नहीं सुना होगा कि हमारी निष्कपट भावना के अनुसार हम गुरु-वैष्णव-भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, अन्यथा वे हमें धोका भी दे सकते हैं। जो लोग उनसे धोखा खाना चाहते हैं, वे धोखा खा सकते हैं, लेकिन जो शुद्ध भक्त हैं - वे कभी भी उनसे धोखा नहीं खा सकते। मुझे पता है कि यह एक विद्रोही सिद्धांत है, लेकिन यह बिल्कुल स्वाभाविक है। मैं इस बात को स्पष्ट करने के लिए कुछ उदाहरण दे सकता हूँ। कुछ भौतिक रूप से योग्य व्यक्ति श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के पास आते थे, और श्रील ठाकुर उन्हें बाहरी सम्मान और आदर देते थे जैसे उन्हें उसी स्तर की कुर्सी या माला आदि देना। तो वे सोचते थे, कि श्रील भक्तिविनोद ठाकुर हमें इतना सम्मान और आदर दे रहे हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से वे खुद को महत्वपूर्ण व्यक्तित्व मानते थे। और श्रील प्रभुपाद जी की लीला में भी ऐसा देखा जाता था, जैसे कि कुछ माया मोहित व्यक्तित्व यह घोषणा करने की हिम्मत करते थे की हम श्रील प्रभुपाद के पूर्ण स्नेहा और आस्था के भाजन हैं। इसके अलावा, ऐसा भी देखा जाता था की कुछ भक्त यह प्रचार करने की हिम्मत करते थे की -श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज हमेशा इस्त-गोष्ठी के माध्यम से हमारा संग प्राप्त करना चाहते थे ।

श्रील गुरुदेव अन्तर्यामी हैं, हम उन्हें कभी मूर्ख नहीं बना सकते, बल्कि वे लाभ, पूजा, प्रतिष्ठा संचित करने की हमारी रुचि देखकर हमें मूर्ख बना सकते हैं।


वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च।

पतितानाम पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।।


मैं सभी गुरु-वैष्णवों को अपना आदरपूर्वक प्रणाम निवेदन करता हूँ। वे कल्पवृक्ष के समान हैं जो सभी की सभी इच्छाओं को पूरी कर सकते हैं, और वे पतित बद्धजीवों के प्रति करुणा से भरे हुए हैं।


गौर हरि हरि बोल।।

 
 
 

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