श्रीगौरकिशोर वाणी
माधुकरी भिक्षा तीन गुनों से परे अर्थात् निर्गुण है। वह हरिभजनमय जीवन निर्वाह करने हेतु लिए जाने के अलावा दूसरों से दान ग्रहण करने पर चित्र मलिन हो जाता है और हरिभजन में विघ्न उपस्थित होता है। माधुकरी निर्गुण वृत्ति हैं। जो वास्तविक माधुकरी ग्रहण करते हैं उनकी कृष्ण में शरणागति प्रबल और देह स्मृति विनष्ट होती है, सांसारिक विषयी लोगों की तरह जिव्हालाम्पट्य (जिव्हा को तृप्त करने की वासना), उपस्थलाम्पट्य (उपस्थ वेग को तृप्त करने की वासना) और हमेशा के लिए संसार में अबद्ध रह जाने की तृष्णा विदूरित हो जाती हैं।
—१ मार्च १९३८ के दैनिक नदिया प्रकाश, एकमात्र परमार्थिक पत्रिका
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