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वैष्णवों में छिद्र कौन देखता है?

  • Writer: The Symbol of Faith
    The Symbol of Faith
  • Jul 16, 2024
  • 1 min read

प्रश्न:- वैष्णवों में छिद्र कौन देखता है?


उ:- जो हरिभजन-विमुख हैं, जिनका बाह्य विचार में प्रताड़ित आँख, कान, नासिका आदि ही अवलम्बन है, वे ही वैष्णवों में छिद्र(दोष) ढूँढ़ते हैं। श्रीगीता जी में श्रीकृष्ण कहते है– भगवान के भक्तों को कभी अमंगल नहीं होता, उनका कभी विनाश नहीं होता। न मे भक्तः प्रणश्यति। क्या अनन्य भजन करने वाला कभी अधःपतित हो सकते हैं? वे अवश्य ही मंगल प्राप्त करते हैं। हम अपनी बुरी दृष्टि के कारण दूसरों में दोष देखते हैं, अत: अपना भला नहीं कर पाते।


यदि मैं आध्यक्षिक(जड़वादी) बन गया तो अधोक्षज-सेवा से वंचित रह जाऊंगा– गुरु पादपद्म सेवा से वंचित रह जाऊंगा। अपने अमंगल के कारण ही मुझे दूजे के अमंगल की बात याद आती है। क्योंकि मैं स्वयं दोषयुक्त हुँ, मैं दूसरों के दोष देखने के लिए आकर्षित होता हूँ। यदि हम अपना भला करते हैं, तो दूसरे लोगों के दोष देखने का समय ही नहीं होगा।

 
 
 

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